सत्य ने माँ, नीति के पास आकर कहा, 'आज मैंने एक बहुत बड़ा प्राणी देखा।' 'कितना बड़ा...?' नीति ने पेट फुलाकर दिखाया। 'नहीं, इससे बड़ा।' नीति ने फिर पेट
फुलाया। 'नहीं, इससे भी बड़ा माँ!' सत्य ने कहा। नीति पेट फुलाती गई और सत्य कहता गया -इससे भी बड़ा। सत्य ने जिस प्राणी को देखा था, भ्रष्टाचार था। नीति उसके
दसवें हिस्से जितना पेट नहीं फुला पाई कि वह फूट गया। नीति बेचारी मर गई।